Tuesday, February 25, 2014

बिंदिया में छपी कहानी

अनुगूँज
सुधा ओम ढींगरा

 

मनप्रीत गहरी नींद में थी। 'तड़ाक' .... की आवाज़ के साथ ही उसे गुरमीत के रोने की आवाज़ आई। नींद में उसे वह आवाज़ कहीं दूर से आती महसूस हुई।
   
''गोरी चमड़ी की तो चूमा- चाटी होती है और मुझे थप्पड़ मारे जाते हैं। अगर मार्था के साथ ही रहना था, तो मुझ से शादी क्यों की? घर की नौकरानी बनकर मैं नहीं रहूँगी। मुझे तलाक चाहिए’’- बिलख रही गुरमीत की आवाज़ लॉबी से आ रही थी। उसकी नींद टूट गई। उसने घड़ी में समय देखा। रात के तीन बजे थे। उसने पलंग पर करवट बदली, उसका पति पम्मी वहाँ नहीं था। वह अभी तक घर नहीं आया था। सुखबीर चिल्ला रहा था-''इस घर में तलाक नहीं होते। तलाक तो तुम्हें कभी नहीं मिलेगा। तुम्हें इसी घर में जीना-मरना होगा। समझीं। किसी ग़लतफ़हमी में न रहना।"
   
गुरमीत उग्र हो गई-'' तलाक तो तेरा बाप भी देगा। मार्था के साथ ही रहना था तो मेरा जीवन क्यों बर्बाद किया। पाँच सालों के एक-एक पल का हिसाब मैं कोर्ट में लूँगी।'' ताबड़ तोड़ लातें घूँसे गुरमीत को पड़ने लगे -''हराम दी जनी बाऊ जी को बीच में क्यों घसीटती हो।''
   
बाऊ जी की बुलन्द आवाज़ गूँजी- ''भैण दी टकी को बहुत गर्मीं चढ़ी हुई है; कर ठंडी इसको। हर दूसरे दिन तमाशा खड़ा करती है। सोने भी नहीं देती।''
   
''बाऊ जी मैं हमेशा के लिए इसे ठंडा करता हूँ, आप सो जाएँ।''
   
''गुरमीत चुप हो जा.… इस समय बाप -बेटा शराब में धुत हैं; क्यों तुम इनसे अपनी हड्डियाँ तुड़वाती हो। मार्था से बीर का पल्ला मैं झुड़वाऊँगी। बस तुम थोड़ा सब्र रखो।'' बीजी ने आवाज़ में मिश्री  घोलकर कहा।
   
''पाँच सालों से आपसे यही सुनती आ रही हूँ; मेरे सब्र का बाँध टूट चुका है। अब आप गिनवाएँगी, बेटी यह महलनुमा घर तेरा है, कार तेरे पास है, क्रेडिट कार्ड्स तेरे पास हैं। दिन भर कहाँ जाती हो, कहाँ से आती हो, कोई नहीं पूछता। जो खिला देती हो खा लेते हैं; जब नहीं खिलाती तब भी कोई कुछ नहीं कहता। बीजी मुझे यह सब नहीं, पति चाहिए; जो पाँच सालों में आप मुझे नहीं दे पाईं। अब तो मैं तलाक ही चाहती हूँ। तोड़ लें जितनी हड्डियाँ तोड़नी हैं।''
 
तीन महीने पहले ही मनप्रीत शादी करके इस घर में आई। जेठ-जेठानी का झगड़ा हर दूसरी- तीसरी रात उसकी नींद तोड़ता। ज़िंदादिल जेठानी गुरमीत घर के वातवरण को बहुत ख़ुशनुमा रखती और उसे छोटी बहनों की तरह प्यार करती। रात को पता नहीं उसे क्या हो जाता; पति की बेरुख़ी गुरमीत सह नहीं सकती।
   
पिछले कई दिनों से मनप्रीत अपने बारे में सोच रही थी। उसकी रातें भी तो गुरमीत की तरह ही बीतती हैं। उसका पति पम्मी शराब में बेसुध सुबह चार बजे से पहले कभी घर नहीं आता और आते ही शेखी बघारता- ''मन यार, पाँच गैस स्टेशन, दस सबवे, पचास टैक्सियाँ; इतना बड़ा व्यापार सँभालते-सँभालते सुबह हो जाती है। आई होप यू अंडरस्टैंड.…'' और बिस्तर पर लुढ़कते ही शुरू हो जाते उसके ख़र्राटे; उसकी साँस के उतार-चढ़ाव के साथ बदबू के उठते भभके से मनप्रीत को कई बार मतली आई। विदेश में रहने वालों की वह जो कल्पना करती थी, इस घर में आने के बाद, टूटकर किरचों में बिखर गई। अंदर तक वह गहरे ज़ख्मीं हुई। अमीर गँवारू उसने गाँव में तो कई देखे थे। यहाँ इस देश में भी…।
   
उसने लाइट जलाई और कमरे से बाहर आ गई। उसका कमरा घर के निचले हिस्से में है, उसकी जेठानी का तीसरी मंज़िल पर और बीच में पड़ती गोल सीढ़ियाँ इस तरह से बनाई गईं थीं कि तीनों मंज़िलों पर रहने वाले एक दूसरे को देख सकें। तीसरी मंज़िल की लॉबी में बीजी, बाऊजी, सुखबीर और गुरमीत खड़े झगड़ रहे थे। गुरमीत उसे देखते ही लॉबी की रेलिंग पकड़ कर ज्वालामुखी-सी फट पड़ी- '' मनप्रीत तुम्हारा हाल भी मेरे जैसा होने वाला है। पम्मी इस समय सोफ़ी के घर पर है। इन्हें बहुएँ नहीं, नौकरानियाँ चाहिए। बहुएँ तो इनकी गोरियाँ हैं। नौकरानियाँ यहाँ मँहगी पड़ती है। ये शादी की आड़ में हमें नौकरानियाँ बना कर लाएँ हैं।''
    
बीजी ने पीछे से उस पर धौल जमाई - '' चुपकर मरजानिये।'' गुरमीत ने बड़ी मुश्किल से अपना संतुलन ठीक किया। इससे पहले कि वह बीजी की तरफ मुड़ती, हट्टे-कट्टे सुखबीर ने, छरहरी गुरमीत को उठाया और वहीं तीसरी मंज़िल की लॉबी से नीचे फैंक दिया। लकड़ी के फ़र्श पर घड़ाम की आवाज़ के साथ गुरमीत की दिल चीरती चीख निकली और पूरा घर काँप गया। मनप्रीत जड़वत् हो गई ।
    
बीजी ने दहाड़ मार कर कहा -'' हाय, सुखबीरे यह क्या किया।'' और तेज़ी से नीचे की ओर भागीं। बाऊजी ने पहला फ़ोन एम्बुलेंस के लिए किया और दूसरा फ़ोन पम्मी को। यह सब कुछ मिनटों में हुआ।
    
तभी पुलिस के सायरन की आवाज़ आई। पड़ोसन जिल वुलेन ने लड़ाई की आवाज़ें, चीख और घड़ाम की आवाज़ सुन कर पुलिस को फ़ोन कर दिया था। आस-पास के घरों की बत्तियाँ जल गईं थीं। लोग घरों से बाहर आ गए थे। डरी, सहमी मनप्रीत की सोचने समझने की शक्ति ही नहीं रही। वह बस आवाज़ें सुन रही थी।
    
''गुरमीत तूने आत्महत्या क्यों की? मैंने तुम्हें कितना समझाया था कि सब कुछ ठीक हो जाएगा। मैं सो रही थी..... तुमने छलाँग लगा दी।'' बीजी छाती पीट-पीट कर रो रही थीं।
    
गुरमीत सिर के बल गिरी और उसका सिर फट गया था। उसी पल उसके प्राण-पखेरू उड़ गए। एम्बुलेंस उसे ले गई और पुलिस अपनी कार्यवाही करने लगी।
    
जिल वुलेन गुरमीत की सहेली थी। वह गुरमीत के दुःख-सुख की साथी थी। उसने पुलिस को हर बात बताई ; जो गुरमीत ने उसके साथ साझी की थी और अपनी शंका भी कि यह आत्महत्या नहीं हत्या है। पुलिस ने छानबीन के बाद सुखबीर और उसके माँ-बाप को हिरासत में ले कर मुक़दमा दायर कर दिया।
    
आज वह दिन है जब मनप्रीत की गवाही उन्हें बचा सकती है और वह खामोश है। उसके सामने जब भी कोई अकस्मात् घटना घटती है, बचपन से ही उसकी जीभ तालू के साथ चिपक जाती है। घटना की प्रत्यक्षदर्शी होते हुए भी वह बोल नहीं पाती और सही समय पर सच न बोल पाने के कारण बाद में वह स्वयं को कोसती रहती है। कई सच वह कह नहीं पाई और झूठ जीतता रहा है, उसका मलाल उसे अब तक है। बचपन की बातें तो बचपन के साथ ही चली गईं। आज जिस दुर्घटना की वह प्रत्यक्षदर्शी गवाह है; उससे पैदा हुए अंतर्द्वंद्व में घिरी हुई वह निढाल, परेशान है। उसकी मानसिक यातना दुर्घटना में जुड़े अपनों और रिश्तों को लेकर है। उसकी ज़ुबान खुल गई तो उसे इसकी बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी, परदेश में उसका घर छूट जाएगा और अगर नहीं बोली तो भी वह उस घर में जी नहीं पाएगी। दुर्घटना उसकी आँखों के सामने हुई है। वह क्या करे…इन परिस्थितियों में इस देश में कोई उसका मार्गदर्शन करने वाला नहीं। मार्गदर्शन करने वाली जेठानी तो यह दुनिया छोड़ कर जा चुकी है। वह उसकी बहुत अच्छी सहेली थी। उसी ने मनप्रीत को अनजाने देश को अपनाना सिखाया। वह अपने गाँव में भी किसी को फ़ोन नहीं कर सकती। उससे मोबाइल फ़ोन ले लिए गया है। जिल उसे बार-बार कह चुकी है-'' मन, टेल्ल द ट्रुथ। गॉड विल हेल्प यू।'' वह जिल को कैसे समझाए कि सच बोल दिया तो देश लौटने के लिए पासपोर्ट कहाँ से लाएगी, वह भी सुसराल वालों के पास है। वापिस जाने के लिए टिकट कहाँ से खरीदेगी। उसे उनकी बात माननी पड़ेगी, वही कहना पड़ेगा; जो उसके सुसराल वालों का वकील चाहता है।
    
कोर्ट की कार्यवाही शुरू हो गई। जज अपनी कुर्सी पर आकर बैठ गया और ज्यूरी ने भी अपनी सीटें सँभालीं। पुलिस और डाक्टर की गवाही और उनके साथ वकीलों की प्रश्नोत्तरी शुरू हुई। उसकी बारी आने वाली है, बचाव पक्ष में उसकी गवाही बहुत महत्त्वपूर्ण है। वह बहुत नर्वस है। जब तक कोर्ट की कार्यवाही चल रही है, लॉबी में बैठी वह स्वयं को मज़बूत कर रही है। उसके भीतर कृष्ण- अर्जुन संवाद चल रहा है। कृष्ण रिश्तों को किनारे रख सच बोलने के लिए कह रहे हैं। उसके भीतर बैठा अर्जुन रिश्तों को प्राथमिकता दे रहा है। रिश्तों के टूटने से डर रहा है। उहापोह की स्थिति में उसका सिर दुःख रहा है। पिछली कई रातों से वह सो नहीं पाई। पम्मी आजकल हर समय उसके साथ रहता है और बार-बार उसे वे वाक्य याद करवाता है ; जो वकील उससे कोर्ट में कहलवाना चाहता है। पर उसे वही याद है; जो उसने देखा है। वह क्या करे एक -एक क्षण उसकी आँखों के सामने घूम रहा है।
    
इस देश की भाषा बोलने में वह असमर्थ हो रही थी। गुरमीत ने हँसते हुए कहा था- ''मन ( मनप्रीत से वह सबकी मन हो गई थी) मुझे भी पहले-पहल यहाँ की अंग्रेज़ी समझने में परेशानी हुई थी। मैंने तो खूब टीवी प्रोग्राम देखे और पड़ोसन जिल से बातें की, बस भाषा को बोलने की झिझक निकल गई तो भाषा पकड़नी आसान हो गई ।'' गुरमीत ने उसे जिल से मिलवाया था।
    
पहली मुलकात में ही जिल ने उसके हाथों को पकड़ कर कहा था-'' मन, यू आर ए इनोसेंट नेचुरल ब्यूटी।'' और उस दिन के बाद वह उससे बतियाने लगी थी। जिल ने दोनों को अंग्रेज़ी में सशक्त किया था।
    
परिकल्पना की ओढ़नी ओढ़कर वह उन नायिकाओं के देश में आई थी; जो छुटपन से सुनी कहानियों में होती थीं। गोरी-चिट्टी, लम्बे सुनहरे बालों वालीं, नखरा करतीं सलोनी हूरें। पर जिल नखरे वाली बिलकुल नहीं थी। गुरमीत के लिए वह उतनी ही दुःखी थी; जितना स्वदेश में उसका परिवार। उसने तो गुरमीत के परिवार को फ़ोन करके कहा था कि वह गुरमीत के लिए लड़ेगी।
    
जज ने उनके वकील यानी बचाव पक्ष के वकील को अगली गवाह लाने के लिए कहा। वकील की असिस्टेंट पैटी कचहरी के कमरे से बाहर लॉबी में उसे लेने आई। उसका दिल ज़ोरों से धड़कने लगा। उसे लगा कि उससे खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा, पैटी ने उसे पकड़ा और कोर्ट के कटघरे तक ले आई। वहाँ उसे एक कुर्सी पर बिठा दिया गया; जहाँ उसके सामने माइक था।
   
जज ने उसे बड़े प्यार से पूछा -''आर यू कम्फर्टेबल।''
   
उसने 'हाँ' में सिर हिला दिया।
   
जज ने वकील की ओर देख कर कहा-''यू मे प्रोसीड।''
   
बाइबल पर हाथ रख कर सच बोलने की कसम दिलवाई गई। वकील ने मनप्रीत को देखकर कहा- ''नाओ टेल देम व्हाट हैपन्ड दैट नाइट।''
   
मनप्रीत को महसूस हुआ कि उसकी सब इन्द्रियों ने काम करना बंद कर दिया है, बस उसका दिल धड़क रहा है; जिसकी आवाज़ वह सुन रही है और उसकी जीभ तालू के साथ चिपक गई है। उसका पति, सास, ससुर और जेठ सामने बैठे उसे घूर रहे हैं। उसका शरीर पसीने से भीग गया। उनके ठीक सामने, कोर्ट की ज़मीन पर उसे गुरप्रीत की लाश पड़ी दिखाई दे रही है और उसकी बेबस खुली आँखें, जो उसने उस रात देखी थीं; उसी की ओर देख कर सच बोलने की गुहार लगा रही हैं। वह ज़मीन की ओर देखे जा रही है। खून से लथपथ उसे अपनी लाश भी वहाँ नज़र आ रही है। दुर्घटना वाले दिन से लेकर आज तक वह कई बार महसूस कर चुकी है कि वह ज़िन्दा नहीं। वह उसकी आत्मा है; जो पम्मी के साथ खुद को घसीट रही है।

वकील ने उसे इशारा किया। पर वह वकील द्वारा पढ़ाए गए सब वाक्य भूल चुकी है। पूरे कोर्ट में सन्नाटा है और उसके बोलने का इंतज़ार हो रहा है। कई पलों तक वह ज़मीन की ओर ही फटी, डरी और सहमी आँखों से देखती रही। लोगों की स्थिरता टूटने लगी। ज्यूरी ने पहलू बदलना शुरू कर दिया। जज ने स्थिति भाँप ली। उसने बड़ी नम्रता से पूछा -'' ऑर यू ओके मैम।'' उसे कुछ सुनाई नहीं दिया। उसे तो बस गुरमीत की आँखें ही दिखाई दे रही हैं; जिन्होंने उसके भीतर कुछ फूँक दिया कि उसकी तालू से चिपकी जीभ छूट गई और वह बोलने लगी और बोलती गई.…सही और सच्ची घटना वर्णित कर ही रुकी और अंत में उसकी आँखों उससे भी
अधिक कह गईं। पम्मी की आँखों का क्रोध उसने भांप लिया। अपने आपको सँभालते हुए एक निवेदन पत्र जज साहब को आदर सहित प्रस्तुत किया; जिसमें लिखा था कि सच बताने के बाद इस देश में अब उसके पास कोई घर नहीं रहेगा और अपने देश भी नहीं लौट सकती; क्योंकि उसका पासपोर्ट सुसराल वालों के पास है। उसकी मदद की जाए।
    
गवाही के बाद उसके शरीर में सरसराहट हुई, संवेगों और भावनाओं का उछाल आया। वह आत्मा नहीं… जीती-जागती मनप्रीत है, एहसास कर ख़ुशी हुई उसे। दुर्घटना के बाद पम्मी ने उसके कन्धों पर झूठ का बोझा लाद दिया था। वह उसके नीचे दब-घुट गई थी। उसे उतार कर वह बहुत हल्का-फुल्का महसूस कर रही है।
    
जिल भाग कर आई और उसे बाहों में भर लिया और उन दोनों को आभास हुआ कि गुरमीत भी उनसे लिपट गई है …

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