Thursday, February 7, 2013

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111 रचनाकारों की रचनाओं से अलंकृत 'हम लोग' हिन्दी आन्दोलन पुणे का वार्षिकांक 2012 में मेरी कहानी छपी है--लड़की थी वह। पढ़ने की सुविधा हो, इसलिए उसे अपने ब्लॉग पर पोस्ट कर दिया है।
 

कहानी 
लड़की थी वह…..
 

    दिसम्बर 1995 की कड़ाकेदार सर्दी की वह रात थी और वही रात तो आज मेरी कलम पर कहानी बन आ बैठी है । आप इसे पढ़ कर कुछ भी सोचें पर मैं इसके अंत में स्तब्ध रह गई थी ।
 

     घर के सभी सदस्य उस रात रजाइयों में दुबके पड़े थे | दिन भर से बिजली का कट था, जो भारतवासियों के लिए आम बात है | इधर बिजली जाती है, उधर घर-घर इन्वर्टर चालू हो जाते हैं | इसकी रोशनी में बच्चों की पढ़ाई, घर के छोटे- मोटे और रसोई के बड़े काम सहजता से कर लिए जाते हैं | हाँ, ऐसे में टी.वी देखने से तक़रीबन सभी कतराते हैं | पूरा परिवार रसोई और साथ के कमरे में या किसी एक कमरे में सिमट कर रह जाता है | उस दिन भी इन्वर्टर की रोशनी में खाने- पीने से निपट कर, टी.वी न देख पाने के कारण, हमनें समय बिताने के लिए, फिल्मी गीतों की अन्ताक्षरी खेलनी शुरू की और खेलते-खेलते सब सर्दी से ठिठुरते रजाइयों में घुस गए |
  

   पंजाब में बिजली का कट, गर्मीं और सर्दी का मौसम नहीं देखता था जबकि पूरे भारत में उन दिनों सर्दियों में कम ही बिजली जाती थी ।
 

    तकनीकि तरक्की और भौतिक सुविधाओं ने तब के भारत और आज के भारत में बहुत परिवर्तन ला दिया है । शहरों में तो अब सुविधा-संपन्न ऐसी- ऐसी इमारतें और घर हैं कि बिजली -पानी के कट से उनका कोई वास्ता ही नहीं ।पर उन दिनों बिजली कट के बाद घर -घर में एक जैसा ही माहौल होता था|   
  
    दिसम्बर की छुट्टियों में हम तीन सप्ताह के लिए भारत जा पाते थे | बेटे की छुट्टियाँ तभी होती थीं | करीब और दूर के रिश्तेदारों को पापा घर पर ही मिलने के लिए बुला लेते थे | उन्हें लगता था कि हम इतने कम समय में कहाँ-कहाँ और किस -किस से मिलने जाएँगे, मिले बिना वापिस आना भी अच्छा नहीं लगता | हमारे जाने पर घर में खूब गहमागहमी और रौनक हो जाती थी | बेटे को अमेरिका की शांत जीवन शैली उपरांत भारत की चहल -पहल बहुत भाती थी, विशेष कर परिवार के सदस्यों का इकठ्ठा हो कर बैठना | बार -बार जब डोर बेल बजती , तो वह भाग कर दरवाज़ा खोलने जाता.. और बिना फ़ोन किये आए मेहमानों को देख कर ख़ुशी से उछल पड़ता था | अमेरिका में फ़ोन किए बिना कोई मिलने नहीं आता | औपचारिक धरती पर ऐसी सौहार्दता कहाँ नसीब होती है ? रिश्तों का सम्मान, सम्बन्धों की गरिमा, उनकी गर्माहट वह पूरा वर्ष महसूस करता..और हर साल हम से पहले भारत आने के लिए तैयार हो जाता |                      
                                                       
  

     दिन भर के कार्यों से थके- मांदे रजाइयों की गर्माहट पाते ही सब सो गए | आधी रात के आस- पास कुत्तों के भौंकनें की आवाज़ें आनी शुरू हुई...आवाज़ें तेज़ एवं ऊँची होती गईं | नींद खुलनी स्वाभाविक थी | रजाइयों को कानों और सिर पर लपेटा गया ताकि आवाज़ें ना आएँ, पर कुत्तों का भौंकना और ऊँचा एवं करीब होता महसूस हुआ...जैसे हमारे घरों के सामने खड़े भौंक रहे हों.....
                       

      घरेलू नौकर-नौकरानी मीनू- मनु साथ वाले कमरे में सो रहे थे | रात के सन्नाटे में उनकी आवाज़ें उभरीं......
                        
                        
''रवि पाल के दादा जी बहुत बीमार हैं | लगता है, यम उन्हें लेने आए हैं और कुत्तों ने यम को देख लिया है''|                     
                        
''यम देख कुत्ता रोता है, ये रो नहीं रहे | ''
                         
                        
''तो क्या लड़ रहे हैं ?''
                         
                         
''लड़ भी नहीं रहे | ''
                         
                         
''मुझे तो ऐसा महसूस हो रहा है कि ये हमें बुला रहे हैं | ''
                        
                         
''मैं तो इनकी बिरादरी की हूँ नहीं , तुम्हीं को बुला रहे होंगे | ''
                         
                         
पापा ने उन्हें डाँटा ---''मीनू-मनु, कभी तो चुप रहा करो | '' 
                          
                        
मेरा बेटा अर्धनिद्रा में ऐंठा--''ओह गाश ! आई डोंट लाइक दिस | ''
                
                       
 

     तभी हमारे सामने वाले घर का छोटा बेटा दिलबाग, लाठी खड़काता माँ-बहन की विशुद्ध गालियाँ निकालता, अपने घर के मेनगेट का ताला खोलने की कोशिश करने लगा | जालंधर में चीमा नगर, रहने के लिए बड़ा पॉश एवं सुरक्षित स्थान माना जाता है | घरों की हर लेन अंत में बंद है | अमेरिका के कल -डी- सैक की तरह | बाहरी आवाजाई कम होती है | फिर भी रात को सभी अपने-अपने मुख्य द्वार पर ताला लगा कर सोते हैं | उसके ताला खोलने और लाठी ठोंकते बाहर निकलने की आवाज़ आई |
 

    वह एम्वे का मुख्य अधिकारी है और पंजाबी की अशिष्ट गालियाँ, विशिष्ट अंग्रेज़ी लहज़े में बोल रहा था | लगता था कि रात पार्टी में पी गई शराब का नशा अभी तक उतरा नहीं था | अक्सर पार्टियों से टुन होकर, जब वह रात को घर आता था तो ऐसी ही भाषा का प्रयोग करता था | उसे देख कर कुत्ते भौंकते हुए एक तरफ को भागने लगे | वह लाठी ज़मीन पर बजाता, पड़ौसियों को ऊँची आवाज़ में कोसता, उनके पीछे-पीछे भागने लगा-- ''साले--घरां विच डके सुत्ते पए नें, एह नई की मेरे नाल आ के हरामियां नूँ दुड़ान---भैण दे टके |'' ( साले घरों में दुबके सोए हुए हैं और यह नहीं करते कि मेरे साथ आकर कुत्तों को भगाएं-बहन के टके )                  

       मेरे बेटे ने करवट बदली --सिरहाना कानों पर रखा--''माम, आई लव इंडिया | आई लाइक दिस लैंगुएज'' |                
                   
 

      दिलबाग हमारे घर के साथ लगने वाले खाली प्लाट तक ही गया था, ( जो इस लेन का कूड़ादान और कुत्तों की शरणस्थली बना हुआ है ) कि उसकी गालियाँ अचानक बंद हो गईं, और ऊँची आवाज़ में लोगों को पुकारने और बुलाने में बदल गईं --जिन्दर, पम्मी, जसबीर, कुलवंत, डाक्डर साहब जल्दी आएँ | उसका यूँ पुकारना था कि हम सब यंत्रवत बिस्तरों से कूद पड़े | किसी ने स्वेटर उठाया, किसी ने शाल | सब अपनी- अपनी चप्पलें घसीटते हुए बाहर की ओर भागे | मनु ने मुख्य द्वार का ताला खोल दिया था | सर्दी की परवाह किए बिना, सब खाली प्लाट की ओर दौड़े | खाली प्लाट का दृश्य देखने वाला था | सब कुत्ते दूर चुपचाप खड़े थे | घरों से निकाल कर फैंके गए फालतू सामान के ढेर पर, एक पोटली के ऊपर स्तन धरे और उसे टांगों से घेर कर एक कुतिया बैठी थी | उस प्लाट से थोड़ी दूर नगरपालिका का बल्ब जल रहा था | जिसकी मद्धिम भीनी-भीनी रौशनी में दिखा...कि पोटली में एक नवजात शिशु लिपटा हुआ पड़ा है और कुतिया ने अपने स्तनों के सहारे उसे समेटा हुआ है जैसे उसे दूध पिला रही हो | वहाँ पहुँचे सभी लोग स्तब्ध रह गए | दृश्य ने सब को स्पंदनहीन कर दिया था | तब समझ में आया कि कुत्ते भौंक नहीं रहे थे, हमें बुला रहे थे |                 
  

     ''पुलिस बुलाओ '' एक बुज़ुर्ग की आवाज़ ने सब की तंद्रा तोड़ी |
  

     अचानक हमारे पीछे से एक सांवली पर आकर्षित युवती शिशु की ओर बढ़ी | कुतिया उसे देख कर परे हट गई | उसने बच्चे को उठा कर सीने से लगा लिया | बच्चा जीवत था | शायद कुतिया ने अपने साथ सटा कर, अपने घेरे में ले कर, उसे सर्दी से यख होने से बचा लिया था | पहचानने में देर ना लगी कि यह तो अनुपमा है | जिसने बगल वाला मकान ख़रीदा है | गरीब माँ-बाप पैसे के आभाव में इसकी शादी नहीं कर पाए और इसने अपने दम पर उच्च शिक्षा ग्रहण की और स्थानीय महिला कालेज में प्राध्यापिका के पद पर आसीन हुई |
   

   ''डाक्टर साहब इसे देखें, यह ठीक तो है ? मैं इसे पालूँगी ।'' मधुर आवाज़ में उसने अपने सीने से सटे नवजात शिशु को हटा कर, अपने शाल में लपेट कर पापा की ओर बढ़ाया । पापा ने गठरी की तरह लिपटा बच्चा खोला, लड़की थी वह .....
      स्तब्धता की ठण्ड भीतर तक जम गई ....