Wednesday, December 4, 2013

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मित्रो, ईपत्रिका 'लेखनी' के दिसम्बर अंक में, 'माह विशेष' के अंतर्गत मेरी कविता छपी है। माह विशेष का ' यह सर्द मौसम सर्दी के पूरे सौंदर्य को लिए है। कविता को यहाँ दे रही हूँ। लेखनी पत्रिका की संपादक हैं -शैल अग्रवाल।


सुबह भिंची-भिंची आँखों से



सुबह भिंची-भिंची आँखों से
खिड़कियों के पर्दे हटाते हुए
बाहर देख
अवाक् रह गई !

शिल्पकार ने
पूरे बगीचे में
पारदर्शी काँच के वृक्ष
औ' झाड़ियां जड़ दी थीं !

रिमझिम फुहार
सारी रात गाती रही
तापमान गिरने से
बर्फ बन गुनगुनाती रही !

तभी शायद
पाइन , टीक औ' पाम के
वृक्षों को शिल्पी घड़ता रहा
रूप नया देता रहा.

ऐसा लगा
काँच बगीचा है मेरा
एक -एक पत्ती
मैग्नोलिया की एक -एक पंखुड़ी
कुशल शिल्पी की कृतियाँ हैं !

काँच की घास
निहार तो सकतीं हूँ .....
पाँव नहीं रख सकती .......

-सुधा ओम ढींगरा


Monday, September 30, 2013

''नई सदी का कथा समय'' हिन्‍दी चेतना का अक्‍टूबर-दिसम्‍बर 2013 विशेषांक अब उपलब्‍ध है ।

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COVER OCT 2013

संरक्षक एवं प्रमुख सम्‍पादक श्‍याम त्रिपाठी, तथा सम्‍पादक डॉ सुधा ओम ढींगरा के सम्‍पादन में

हिन्दी चेतना (हिन्दी प्रचारिणी सभा कैनेडा की त्रैमासिक पत्रिका)

का विशेषांक अक्‍टूबर-दिसंबर 2013

''नई सदी का कथा समय'' (अतिथि सम्‍पादक - पंकज सुबीर )

नई सदी की हिन्‍दी कहानी पर केन्द्रित।

पिछले 13 वर्षों का प्रतिनिधित्व करने वाली चार कहानियां।

स्त्री लेखन की प्रतिनिधि कहानी (चयन : सुप्रसिद्ध कहानीकार विमल चन्द्र पाण्डेय ।)

पुरुष लेखन की प्रतिनिधि कहानी (चयन : सुप्रसिद्ध कहानीकार मनीषा कुलश्रेष्ठ।)

प्रवासी स्त्री तथा पुरुष लेखन की प्रतिनिधि कहानियाँ (चयन : सुप्रसिद्ध आलोचक साधना अग्रवाल।)

इन चारों कहानियों के माध्यम से अपने समय की पड़ताल करते हुए चार आलेख।

दूसरी परम्‍परा के सम्‍पादक डॉ. सुशील सिद्धार्थ से सुधा ओम ढींगरा का विशेष साक्षात्कार ।

नई सदी के कथा समय पर युवा आलोचक वैभव सिंह का आलेख।

नई सदी के तेरह साल और हिन्दी किस्सागोई युवा कथाकार गौतम राजरिशी का आलेख।

प्रवासी हिन्दी कहानी की नई सदी, वरिष्ठ कथाकार तेजेन्द्र शर्मा तथा अर्चना पैन्यूली के आलेख।

नई सदी में सामने आई प्रवासी कहानी पर साहित्यकारों के बीच गोलमेज परिचर्चा।

कहानीकार विवेक मिश्र के संयोजन में कथाकारों, सम्‍पादकों तथा आलोचकों के बीच परिचर्चा।

''नई सदी की सबसे पसंदीदा दस कहानियाँ'' साहित्‍यकारों की पसंदीदा 10 कहानियां

साथ में सम्‍पादकीय, आखिरी पन्‍ना, साहित्यिक समाचार और भी बहुत कुछ।

ऑन लाइन पढ़ें

http://issuu.com/hindichetna/docs/hindi_chetna_oct_to_dec_2013_color

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http://www.vibhom.com/hindi%20chetna.html

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आप की प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा |

सादर सप्रेम,

हिन्दी चेतना टीम

Friday, September 6, 2013

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वैश्विक रचनाकार: कुछ मूलभूत जिज्ञासाएँ 
मेरी नई पुस्तक 
           कुछ पत्रकारों और लेखकों ने साक्षात्कार लेने की कला को एक रचनात्मक हुनर बना लिया है। उन्हें पता है कि किस लेखक से बात करने का सलीका क्या है। संवाद एक सलीका ही तो है। साक्षात्कार का सौन्दर्य है संवादधर्मी होना।  
           ऐसी अनेक विशेषताएँ सुधा ओम ढींगरा द्वारा लिये गये साक्षात्कारों में सहज रूप से उपलब्ध हैं। ‘वैश्विक रचनाकारः कुछ मूलभूत जिज्ञासाएँ’ में मौजूद साक्षात्कार इस विधा की गरिमा को समृद्ध करते हैं। समर्पित रचनाकार सुधा ओम ढींगरा बातचीत करने में दक्ष हैं। वैसे भी जब वे फोन करती हैं तो अपनी मधुर आवाज़ से वातावरण सरस बना देती हैं। जीवन्तता साक्षात्कार लेने वाले का सबसे बड़ा गुण है। बातचीत को किसी फाइल की तरह निपटा देने से मामला बनता नहीं। सुधा जी को इस विधा में दिलचस्पी है। उन्होंने अनुभव और अध्ययन से इसे विकसित किया है। वे ऐसी लेखक हैं, जिन्हें टेक्नोलॉजी का महत्त्व पता है। बातचीत करने के लिये आमने सामने होने के अतिरिक्त उन्होंने फोन, ऑनलाइन और स्काइप का उपयोग किया है। बल्कि आमना-सामना अत्यल्प है। इससे कई बार औपचारिक या किताबी होने का संकट रहता है जो स्वाभाविक है। ....लेकिन यह देखकर प्रसन्नता होती है कि सारे साक्षात्कार जीवन्त और दिलचस्प हैं।
         
अमेरिका, कैनेडा, इंग्लैण्ड, आबूधाबी, शारजाह, डेनमार्क और नार्वे के साहित्यकारों से सुधा जी के प्रश्न सतर्क हैं। साहित्यकारों ने भी सटीक उत्तर दिये हैं। यह पुस्तक पाठकों की ज्ञानवृद्धि के साथ उनकी संवेदना का दायरा भी व्यापक करेगी। वैश्विक रचनाशीलता की मानसिकता को यहाँ लक्षित किया जा सकता है। ऐसी पुस्तकें हिन्दी में बहुत कम हैं। शायद न के बराबर। विश्व के अनेक देशों में सक्रिय हिन्दी रचनाकारों के विचार पाठकों तक पहुँचाने के लिए हमें सुधा ओम ढींगरा को धन्यवाद भी देना चाहिए। हिन्दी में कुछ विशेषज्ञ रहे हैं जो साक्षात्कार को रचना बना देते हैं। सुधा जी को देखकर.... उनके काम को पढ़कर और इस विधा के विषय में उनके विचार जानकर उनकी विशेषज्ञता की सराहना की जानी चाहिए।
-सुशील सिद्धार्थ
सम्पादक
राजकमल प्रकाशन
1 बी, नेताजी सुभाष मार्ग
दरियागंज-2
मोबाइल 09868076182

Thursday, August 22, 2013

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अक्षरम में मेरी कविताएँ छपी हैं.……

Sunday, June 23, 2013

कैनेडा से प्रकाशित त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका 'हिन्‍दी चेतना' का जुलाई सितम्‍बर 2013 अंक अब उपलब्‍ध है ।

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आदरणीय मित्रों
श्री श्‍याम त्रिपाठी तथा सुधा ओम ढींगरा के संपादन में कैनेडा से प्रकाशित त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका 'हिन्‍दी चेतना' का जुलाई सितम्‍बर 2013 अंक अब उपलब्‍ध है, जिसमें हैं सुधा अरोड़ा का अंकित जोशी द्वारा लिया गया विशेष साक्षात्‍कार । अनिल प्रभा कुमार, अफरोज़ ताज तथा बलराम अग्रवाल की कहानियां । वरिष्‍ठ कहानीकार श्री नरेंद्र कोहली की लम्‍बी कहानी। प्रेम जनमेजय, सुकेश साहनी तथा दीपक मशाल की लघुकथाएं। नुसरत मेहदी की ग़ज़लें। भरत तिवारी, अनीता कपूर, प्रतिभा सक्‍सेना तथा चंदन राय की कविताएं। हाइकु,  माहिया, सेदोका, आलेख, संस्‍मरण। साथ में पुस्तक समीक्षा, साहित्यिक समाचार, चित्र काव्यशाला, विलोम चित्र काव्यशाला और आख़िरी पन्ना । यह अंक अब ऑनलाइन उपलब्‍ध है, पढ़ने के लिये नीचे दिये गये लिंक पर जाएं ।
ऑन लाइन पढ़ें
http://issuu.com/hindichetna/docs/hindi_chetna_july_september_2013_co
वेबसाइट से डाउनलोड करें
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आप की प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा |
सादर सप्रेम,
हिन्दी चेतना टीम

Monday, June 10, 2013

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मित्रो, वर्तमान साहित्य में मेरी कहानी ''वह कोई और थी'' छपी है, समय मिले तो पढ़ें।

Friday, May 10, 2013

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हरियाणा साहित्य अकादमी की पत्रिका 'हरिगंधा' में मेरी कहानी 'खोज' छपी है, आप की प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा। 

Tuesday, April 30, 2013

कहानी 'उसकी खुशबू'

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मित्रो, महिलाओं की लोकप्रिय व्‍यावसायिक पत्रिका 'वनिता' में मेरी एक कहानी छपी है--उसकी खुशबू । आप भी इसे पढ़ सकते हैं ......

Monday, April 8, 2013

'हिन्‍दी चेतना' का अप्रैल जून 2013 अंक अब उपलब्‍ध है

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april_june_2013

आदरणीय मित्रों
होली तथा नव संवत्‍सर की शुभकामनाएं
श्री श्‍याम त्रिपाठी तथा सुधा ओम ढींगरा के संपादन में कैनेडा से प्रकाशित त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका 'हिन्‍दी चेतना' का अप्रैल जून 2013 अंक अब उपलब्‍ध है, जिसमें हैं रेखा मैत्र का विशेष साक्षात्‍कार । महेन्‍द्र दवेसर, भावना सक्‍सैना तथा नीरा त्‍यागी की कहानियां । वरिष्‍ठ कहानीकार श्री नरेंद्र कोहली की लम्‍बी कहानी। हाइकु,  कविताएं, ग़ज़लें, आलेख, लघुकथाएं, संस्‍मरण। साथ में पुस्तक समीक्षा, साहित्यिक समाचार, चित्र काव्यशाला, विलोम चित्र काव्यशाला और आख़िरी पन्ना । यह अंक अब ऑनलाइन उपलब्‍ध है, पढ़ने के लिये नीचे दिये गये लिंक पर जाएं ।
ऑन लाइन पढ़ें
http://issuu.com/hindichetna/docs/color_hindi_chetna_april_june__2013
वेबसाइट से डाउनलोड करें
http://www.vibhom.com/hindi%20chetna.html
फेस बुक पर
http://www.facebook.com/people/Hindi-Chetna/100002369866074
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सादर सप्रेम,
सुधा ओम ढींगरा
संपादक -हिन्दी चेतना

Saturday, March 2, 2013

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महत्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय वर्धा की पत्रिका 'पुस्तक वार्ता' में मेरी कहानी ' सूरज क्यों निकलता है?' पर साधना अग्रवाल का अंतर्पाठ पढ़ें। आभारी हूँ साधना जी की जिन्होंने बेहद खूबसूरत समीक्षा की। 

Thursday, February 7, 2013

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111 रचनाकारों की रचनाओं से अलंकृत 'हम लोग' हिन्दी आन्दोलन पुणे का वार्षिकांक 2012 में मेरी कहानी छपी है--लड़की थी वह। पढ़ने की सुविधा हो, इसलिए उसे अपने ब्लॉग पर पोस्ट कर दिया है।
 

कहानी 
लड़की थी वह…..
 

    दिसम्बर 1995 की कड़ाकेदार सर्दी की वह रात थी और वही रात तो आज मेरी कलम पर कहानी बन आ बैठी है । आप इसे पढ़ कर कुछ भी सोचें पर मैं इसके अंत में स्तब्ध रह गई थी ।
 

     घर के सभी सदस्य उस रात रजाइयों में दुबके पड़े थे | दिन भर से बिजली का कट था, जो भारतवासियों के लिए आम बात है | इधर बिजली जाती है, उधर घर-घर इन्वर्टर चालू हो जाते हैं | इसकी रोशनी में बच्चों की पढ़ाई, घर के छोटे- मोटे और रसोई के बड़े काम सहजता से कर लिए जाते हैं | हाँ, ऐसे में टी.वी देखने से तक़रीबन सभी कतराते हैं | पूरा परिवार रसोई और साथ के कमरे में या किसी एक कमरे में सिमट कर रह जाता है | उस दिन भी इन्वर्टर की रोशनी में खाने- पीने से निपट कर, टी.वी न देख पाने के कारण, हमनें समय बिताने के लिए, फिल्मी गीतों की अन्ताक्षरी खेलनी शुरू की और खेलते-खेलते सब सर्दी से ठिठुरते रजाइयों में घुस गए |
  

   पंजाब में बिजली का कट, गर्मीं और सर्दी का मौसम नहीं देखता था जबकि पूरे भारत में उन दिनों सर्दियों में कम ही बिजली जाती थी ।
 

    तकनीकि तरक्की और भौतिक सुविधाओं ने तब के भारत और आज के भारत में बहुत परिवर्तन ला दिया है । शहरों में तो अब सुविधा-संपन्न ऐसी- ऐसी इमारतें और घर हैं कि बिजली -पानी के कट से उनका कोई वास्ता ही नहीं ।पर उन दिनों बिजली कट के बाद घर -घर में एक जैसा ही माहौल होता था|   
  
    दिसम्बर की छुट्टियों में हम तीन सप्ताह के लिए भारत जा पाते थे | बेटे की छुट्टियाँ तभी होती थीं | करीब और दूर के रिश्तेदारों को पापा घर पर ही मिलने के लिए बुला लेते थे | उन्हें लगता था कि हम इतने कम समय में कहाँ-कहाँ और किस -किस से मिलने जाएँगे, मिले बिना वापिस आना भी अच्छा नहीं लगता | हमारे जाने पर घर में खूब गहमागहमी और रौनक हो जाती थी | बेटे को अमेरिका की शांत जीवन शैली उपरांत भारत की चहल -पहल बहुत भाती थी, विशेष कर परिवार के सदस्यों का इकठ्ठा हो कर बैठना | बार -बार जब डोर बेल बजती , तो वह भाग कर दरवाज़ा खोलने जाता.. और बिना फ़ोन किये आए मेहमानों को देख कर ख़ुशी से उछल पड़ता था | अमेरिका में फ़ोन किए बिना कोई मिलने नहीं आता | औपचारिक धरती पर ऐसी सौहार्दता कहाँ नसीब होती है ? रिश्तों का सम्मान, सम्बन्धों की गरिमा, उनकी गर्माहट वह पूरा वर्ष महसूस करता..और हर साल हम से पहले भारत आने के लिए तैयार हो जाता |                      
                                                       
  

     दिन भर के कार्यों से थके- मांदे रजाइयों की गर्माहट पाते ही सब सो गए | आधी रात के आस- पास कुत्तों के भौंकनें की आवाज़ें आनी शुरू हुई...आवाज़ें तेज़ एवं ऊँची होती गईं | नींद खुलनी स्वाभाविक थी | रजाइयों को कानों और सिर पर लपेटा गया ताकि आवाज़ें ना आएँ, पर कुत्तों का भौंकना और ऊँचा एवं करीब होता महसूस हुआ...जैसे हमारे घरों के सामने खड़े भौंक रहे हों.....
                       

      घरेलू नौकर-नौकरानी मीनू- मनु साथ वाले कमरे में सो रहे थे | रात के सन्नाटे में उनकी आवाज़ें उभरीं......
                        
                        
''रवि पाल के दादा जी बहुत बीमार हैं | लगता है, यम उन्हें लेने आए हैं और कुत्तों ने यम को देख लिया है''|                     
                        
''यम देख कुत्ता रोता है, ये रो नहीं रहे | ''
                         
                        
''तो क्या लड़ रहे हैं ?''
                         
                         
''लड़ भी नहीं रहे | ''
                         
                         
''मुझे तो ऐसा महसूस हो रहा है कि ये हमें बुला रहे हैं | ''
                        
                         
''मैं तो इनकी बिरादरी की हूँ नहीं , तुम्हीं को बुला रहे होंगे | ''
                         
                         
पापा ने उन्हें डाँटा ---''मीनू-मनु, कभी तो चुप रहा करो | '' 
                          
                        
मेरा बेटा अर्धनिद्रा में ऐंठा--''ओह गाश ! आई डोंट लाइक दिस | ''
                
                       
 

     तभी हमारे सामने वाले घर का छोटा बेटा दिलबाग, लाठी खड़काता माँ-बहन की विशुद्ध गालियाँ निकालता, अपने घर के मेनगेट का ताला खोलने की कोशिश करने लगा | जालंधर में चीमा नगर, रहने के लिए बड़ा पॉश एवं सुरक्षित स्थान माना जाता है | घरों की हर लेन अंत में बंद है | अमेरिका के कल -डी- सैक की तरह | बाहरी आवाजाई कम होती है | फिर भी रात को सभी अपने-अपने मुख्य द्वार पर ताला लगा कर सोते हैं | उसके ताला खोलने और लाठी ठोंकते बाहर निकलने की आवाज़ आई |
 

    वह एम्वे का मुख्य अधिकारी है और पंजाबी की अशिष्ट गालियाँ, विशिष्ट अंग्रेज़ी लहज़े में बोल रहा था | लगता था कि रात पार्टी में पी गई शराब का नशा अभी तक उतरा नहीं था | अक्सर पार्टियों से टुन होकर, जब वह रात को घर आता था तो ऐसी ही भाषा का प्रयोग करता था | उसे देख कर कुत्ते भौंकते हुए एक तरफ को भागने लगे | वह लाठी ज़मीन पर बजाता, पड़ौसियों को ऊँची आवाज़ में कोसता, उनके पीछे-पीछे भागने लगा-- ''साले--घरां विच डके सुत्ते पए नें, एह नई की मेरे नाल आ के हरामियां नूँ दुड़ान---भैण दे टके |'' ( साले घरों में दुबके सोए हुए हैं और यह नहीं करते कि मेरे साथ आकर कुत्तों को भगाएं-बहन के टके )                  

       मेरे बेटे ने करवट बदली --सिरहाना कानों पर रखा--''माम, आई लव इंडिया | आई लाइक दिस लैंगुएज'' |                
                   
 

      दिलबाग हमारे घर के साथ लगने वाले खाली प्लाट तक ही गया था, ( जो इस लेन का कूड़ादान और कुत्तों की शरणस्थली बना हुआ है ) कि उसकी गालियाँ अचानक बंद हो गईं, और ऊँची आवाज़ में लोगों को पुकारने और बुलाने में बदल गईं --जिन्दर, पम्मी, जसबीर, कुलवंत, डाक्डर साहब जल्दी आएँ | उसका यूँ पुकारना था कि हम सब यंत्रवत बिस्तरों से कूद पड़े | किसी ने स्वेटर उठाया, किसी ने शाल | सब अपनी- अपनी चप्पलें घसीटते हुए बाहर की ओर भागे | मनु ने मुख्य द्वार का ताला खोल दिया था | सर्दी की परवाह किए बिना, सब खाली प्लाट की ओर दौड़े | खाली प्लाट का दृश्य देखने वाला था | सब कुत्ते दूर चुपचाप खड़े थे | घरों से निकाल कर फैंके गए फालतू सामान के ढेर पर, एक पोटली के ऊपर स्तन धरे और उसे टांगों से घेर कर एक कुतिया बैठी थी | उस प्लाट से थोड़ी दूर नगरपालिका का बल्ब जल रहा था | जिसकी मद्धिम भीनी-भीनी रौशनी में दिखा...कि पोटली में एक नवजात शिशु लिपटा हुआ पड़ा है और कुतिया ने अपने स्तनों के सहारे उसे समेटा हुआ है जैसे उसे दूध पिला रही हो | वहाँ पहुँचे सभी लोग स्तब्ध रह गए | दृश्य ने सब को स्पंदनहीन कर दिया था | तब समझ में आया कि कुत्ते भौंक नहीं रहे थे, हमें बुला रहे थे |                 
  

     ''पुलिस बुलाओ '' एक बुज़ुर्ग की आवाज़ ने सब की तंद्रा तोड़ी |
  

     अचानक हमारे पीछे से एक सांवली पर आकर्षित युवती शिशु की ओर बढ़ी | कुतिया उसे देख कर परे हट गई | उसने बच्चे को उठा कर सीने से लगा लिया | बच्चा जीवत था | शायद कुतिया ने अपने साथ सटा कर, अपने घेरे में ले कर, उसे सर्दी से यख होने से बचा लिया था | पहचानने में देर ना लगी कि यह तो अनुपमा है | जिसने बगल वाला मकान ख़रीदा है | गरीब माँ-बाप पैसे के आभाव में इसकी शादी नहीं कर पाए और इसने अपने दम पर उच्च शिक्षा ग्रहण की और स्थानीय महिला कालेज में प्राध्यापिका के पद पर आसीन हुई |
   

   ''डाक्टर साहब इसे देखें, यह ठीक तो है ? मैं इसे पालूँगी ।'' मधुर आवाज़ में उसने अपने सीने से सटे नवजात शिशु को हटा कर, अपने शाल में लपेट कर पापा की ओर बढ़ाया । पापा ने गठरी की तरह लिपटा बच्चा खोला, लड़की थी वह .....
      स्तब्धता की ठण्ड भीतर तक जम गई ....