Monday, August 23, 2010

प्रेम चन्द की कहानियों और उपन्यासों के पात्र सदा ज़िन्दा रहेंगे....

वातायन में छपा मेरा आलेख आप को भी पढ़वाना चाहती हूँ ....शायद आप को पसंद आए...
 
प्रेम चन्द की कहानियों और उपन्यासों के पात्र सदा ज़िन्दा रहेंगे....                  

               मुंशी प्रेम चन्द के साहित्य पर आए दिन प्रश्न चिन्ह लगते रहते हैं. कभी उनकी कहानियों की
सार्थकता पर आलोचनाएँ होती हैं और कभी उन पर समीक्षाएं. साहित्यकारों के ऐसे तेवर देख कर 
हमेशा
सोच में पड़ जाती हूँ कि कल को आगामी पीढ़ी आज के साहित्य पर इसी तरह आक्षेप लगा कर चर्चा करेगी.
अगर साहित्य अपने युग का दर्पण है और युग का प्रतिनिधित्व करता है, तो उसे फिर उसी नज़र से देखना
चाहिए. हर युग में साहित्य अपने समय को लेकर ही तो लिखा जाता है.
                
               इस लेख को लिखने की प्रेरणा मुझे मेरे बेटे से मिली...
बात उन दिनों की है, जब वह नार्थ कैरोलाईना
यूनीवर्सिटी में हिंदी विदेशी भाषा के तौर पर सीख रहा था और कोर्स में प्रेमचंद के साहित्य को पढ़ रहा था.
 उसने
हिन्दी माईनर ली थी और वह अन्तिम वर्ष का छात्र था. मैं अक्सर हिन्दी साहित्य पर 
उससे बातचीत किया करती थी और कई वे बातें उसे समझा देती थी, जो कोर्स में नहीं थीं. इरादा उसे हिन्दी भाषा और साहित्य के प्रति जागरूक करना अधिक होता था.                     
                
               एक दिन मैंने उसे प्रेम चन्द की 'कफ़न' कहानी पढ़ते देखा और मुझ से रहा नहीं गया. मैंने प्रेम चन्द के साहित्य पर बात शुरू कर दी. बातचीत के दौरान मैंने महसूस किया कि प्रेमचंद तो युगों- युगों तक पढ़े और सराहे जाएँगे. तीन पीढ़ियों ने तो हमारे घर में ही प्रेमचंद को पढ़ा है- मेरे माँ बाप, मैंने और बेटे ने, जो अमेरिका में जन्मा-पला है. पता नहीं मुझे ऐसा क्यों लग रहा था कि प्रेम चन्द के साहित्य को समझने में उसे दिक्कत  होगी. 
वह साहित्य समाज के आधुनिकरण की क्रांति से परे का ग्रामीण परिवेश लिए, संघर्षों से जूझते किसानों का सीधा-सादा साहित्य है. शायद वह उससे रिलेट ना कर पाए और उसकी गहराई तक ना पहुँच सके. बात मेरी सोच के विपरीत हो गई..... 
                 
                उसने हँसते हुए कहा --''माँ प्रेम चन्द का  साहित्य समय से पहले लिखा गया था, इसलिए प्रेमचंद जी को साहित्य में वह स्थान नहीं मिल सका जो मिलना चाहिए था.
 उनका सबसे बड़ा सम्मान है मेरे जैसे कई बच्चों ने अमेरिका में उन्हें पढ़ा और सराहा है. प्रेमचंद के  साहित्य की आज भी सार्थकता है. उनकी कहानी 'कफन' के पात्र अमेरिका में भी मिलते है. जो वर्ग फूड स्टैम्प्स को बेचकर शराब खरीदता है. खाना बेघर लोगों की रसोई में खा कर रोज़ शराब पीकर झूमता है. क्या घीसू और माधो के चरित्रों की तरह नहीं है? ऐसा वर्ग 'कफन कहानी ' के घीसू-माधो पात्रों का दूसरा रूप है.. मनुष्य का मूल भूत स्वभाव सब जगह एक सा है. परिवेश के साथ थोड़ा बहुत बदल जाता है.''
              
                ''भारत में ऐसा वर्ग बहुत बड़ी मात्रा में है, जिनकी पत्नियाँ दूसरों के घरों में काम करती है और पति शाम को शराब पी कर आते हैं, पत्नियों को पिटते है. मर जाती है तो जानते है कि कफन तो जनता ला ही देगी - पति पीने से हटते तो नहीं.....'' बेटा बोलता गया और मैं सुनती गई --''माँ इन्टरनेट पर मैं रोज़ न्यूज़ पढ़ता हूँ--किसानों के प्रदर्शन, उनका आत्मदाह, और उनके कष्टों का पता हमें चलता हैं. जो आज किसानों के साथ हो रहा है...प्रेमचंद, तो बहुत पहले ही यह लिख चुके हैं, हम लोग ही उसे समझ नहीं पा रहे हैं.''
              
                 बेटे ने प्रश्न किया-- माँ क्या आज भारत में निर्मला नहीं है? क्या आज भारत में होरी नहीं है? प्रेमचंद की कहानियाँ और उपन्यास(उनके पात्र) आज भी जहाँ-तहाँ आपको मिल जायेगें. प्रेमचंद के पात्र आज भी हैं और कल भी रहेंगे. बेटा तो यह बात कहकर अपनी पुस्तकें उठा कर चला गया और मैं सोच में बैठी रही....
               
                प्रेमचंद की कहानी 'बालक' याद आ गई. उसका ग्रामीण पात्र अपनी बदनाम पत्नी के बच्चे को अपना कहता है, क्योंकि अब वह उसकी है तो उसका बच्चा भी उसीका हुआ. मेरे साथ काम करने वाले रिचर्ड और जोडी का भी यही कहना है. रिचर्ड ने काल गर्ल जोडी से शादी कर उसके बच्चे को अपना कहा. जब जोडी उसकी है तो उसका हिस्सा, उसका बच्चा भी उस का है.
              
               प्रेमचंद के ग्रामीण पात्र और अमेरिका के शहरी पात्र की सोच कितनी मिलती है. मेरे बेटे ने ठीक कहा था कि 'प्रेमचंद' के पात्र हर  युग में,  हर देश में, हर परिवेश में हैं, रहेंगे और मिलेंगे.
             
               प्रेमचंद को तीन पीढ़ियाँ ही नहीं जब तक मानवी सभ्यता है लोग उन्हें पढ़ते रहेंगे. उनकी कहानियों और उपन्यासों के पात्र सदा ज़िन्दा रहेंगे.

2 comments:

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

जब तक भूख और गरीबी है, प्रेमचंद को सदा याद किया जाएगा॥

"अर्श" said...

दीदी को प्रणाम ,
प्रेम चन्द की साहित्य की यही तो खासियत है की उसके पत्र मर ही नहीं सकते क्यूंकि हम सभी कहीं ना कहीं उसमे अपने को जीवित रखते हैं.... आज कीआपकी बात साहित्य को और बल दे रही है ..

अर्श